Sunday, April 11, 2010

श्री गणेश
मनुष्य अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए कोई भी कार्य आरम्भा करने के पूर्व एक अच्छे समय का चयन करता है आय सा इस लिए किया जाता है की बिना किसी परेशानी के जीवन को उन्नति के मार्ग पर आग्रसर किया जा सके, समय चयन के प्रक्रिया ही मुहुर्त कलती है मुहुर्त के चयन के लिए पंचांग,तिथि,वार ,नछत्र,कर्ण और योग को देखा जाता है मुहुर्त के स्न्दर्व में ऐसी कथा आती है की दुर्योधन की विजय और पांडव की पराजय के लिए धीरतीरासट ने मुहूर्त निकलवाया था इस बात का पता श्री कृष्ण को लगा तो उन्हों ने उस सारी समय में अर्जुन को गीता का उपदेश दे डाला/जय से ही कोरवों का सुभ समय समाप्त हुवा और पांडवों के लिए उत्तम समय आया उसी छन युद्ध का श्री गनेश कर दिया.
जो उत्तम समय धीरतीरासट ने चुना था उसे श्री कृष्ण ने व्यतीत करवा दिया और एक प्रकार से युद्ध को पांडवों के पक्छ में कर दिया वास्तव में मुहूर्त का अपनी वैज्ञानिकता,आप न महत्वा है इसका निर्धारण अगर जोतिसी सिद्धांत और ग्रहों के आधार पर किया जाय तो कार्य की सफलता कई गुना बढ़ जाती है
असुभ मुहूर्त में किये कार्य का परिणाम असुभ होता है जेसे भारत को स्वतंत्रता १५ अगस्त १९४७ की मध्य रात्रि को ब्रिष लगन में मिली थी उस समय ब्रिष लगा में रहू था और केंद्र स्थान खाली था सारे ग्रह कालसर्प योग में थे या सुभ नहीं था परिणाम स्वरुप आजादी के बाद रास्ट्रपिता की हत्या,बटवारे में लाखो की मृत्यु और विश्थापन से सभी परिचित है अगर वेदिक काल की ओर देखे तो अथर्वा वेद में सुभ मुहुर्त से सम्बंधित अनेक विवरण मिलते है इसमें दीर्घायु सुख संम्पत्ति ,सत्रु पर विजय आदि मुहूर्तो का उल्लेख मिलता है मुहूर्त में तिथि वर के बाद नछत्र का विशेष महत्वा है ये नछत्र मुख्यातह २७ है लेकिन उत्त्र्रा आसाढ़ के चतुर्थ चरण आयर स्रवन नछत्र के १५वे भाग को अभिजित नछत्र के संज्ञा दी गयी है जिससे इसकी संख्या २८ होगई है अभिजित नछत्र सभी कार्यों के लिए सुभ माना गया है प्रतेक दिन का मध्यं भाग अभिजित मुहुर्त कहलाता है जो मध्य से पहले और बाद में ४८ मिनट का होता है इस काल में लगभग सभी दोषों के निवारण की अनोखी सकती होती है इसके बाद कृतिका अन्य सभी मुहूर्तो से अधिक सुभ है मुहुर्त के संन्दर्व में चौघडियों के विषय में विचार करना आवश्यक है अतः किसी दिसा के यात्रा में चौघडियों के स्वामीका विचार भी करलेना चाहिए अति आवश्यक होने पर रविवार को पान या घी,सोमवार को दर्पण देखकर ,मंगलवार को गुड खा कर ,बुद्धवार को धनिया या तिल खा कर ,ब्रिहस्पतिवर को जीरा या दही खाकर,शुक्रवार को दही या दूध पि कर और सनी वर को अदरख या उड़द खा कर प्रस्थान किया जा सकता है
व्यक्तिगत कार्यों के अलावा राजकीय कार्यों में भी मुहूत लाभकारी सिद्ध होतें है मुहूर्त का सही विवेचना कर अनेक दुस्प्रभावों को दूर किया जा सकता है
अतः सभी तथ्यों को ध्यान में रख कर ही सुभ कार्य करना चाहिए..............................
आप लोगों का ही सरयू साव
जय माता दी

2 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुति। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

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  2. aap ki drishti acchi lagi ,bhai ji aap jyotishi hai kya?
    swagat blogduniya mey.
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

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