Saturday, April 3, 2010

वास्तु में शुभ मांगलिक चिन्हों का महत्व
वास्तु शास्त्र की महता दिन प्रतिदिन अनुभव की जा रही है /वास्तु के सुखद परिणामो से सिद्ध हो गया है कि प्राकृतिक उर्जा के समायोजन से निर्मित भवन में सकरात्मक उर्जा प्रवाहित होते रहता है ,जिसके परिणाम से स्वास्थय ,सफलताए और शांति प्राप्त होती है /वास्तु में शुख शांति स्म्रिधि के लिए वास्तु नियमो के साथ शुभ मांगलिक चिन्हों का भी प्रयोग किया जाता है
अपने भवन के मुख्य द्वार पर अपने धर्म के अनुसार मांगलिक चिन्हों का प्रयोग करना चाहिए
भारत के किसी भी राज्य ,जाती या धर्म कि संस्कृति को समझने के लिए उसके शुभ प्रतिको को समझना जरूरी है ये प्रतिक आस्था और विस्वास के आधार पर है .हिन्दू धर्म में प्रतिको को अद्भुत महिमा वाला मन जाता है
स्वास्तिक;-
हमारे भविष्य दृष्टा वैदिक काल से शुभ मांगलिक चिन्हों का प्रयोग बताया है जो चमत्कारिक है भारतीय संसकिरिति में ,मांगलिक पूजा और त्योहारों में घर के प्रवेश द्वार पर ,पूजा स्थल ,रसोई घर या अन्नागार के द्वार पर गिर्हनियो द्वारा तरह तरह के मांगलिक चित्र बनाये जाते थे
स्वास्तिक कि सीधी रेखा शिवलिंग के संकेत देती है और दूसरी रेखा सक्ति का संकेत देती है
गणित में +चिन्ह को घनात्मक माना जाता है ,विज्ञान के अनुसार पोजेटिव और निगेटिव दो अलग अलग सक्ति के मिलन को प्लस कहा गया है
स्वास्तिक को उल्टा बनाने से प्रतिकूल उर्जा बनाने लगती है और सही चिन्ह अनुकूल उर्जा बनती है जो शुभ फलदाई होता है श्रेस्ठ परिणाम के लिए ९अन्गुल अर्थात ६इन्च से कम नहीं होना चाहिए
स्वास्तिक का उपयोग मुख्य द्वार या कमरे के द्वारो पर घी और सिंदूर से अंकित करने से अधिक फलदाई होता है अत ;स्वास्तिक का उपयोग अवस्य करना चाहिए
जय श्री कृष्ण
सरयू प्रसाद साव

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