Monday, April 12, 2010

आइना
जंहा शांति हो जंहा प्रेम ,नही कलह कि दिखती छाया !
ठाकुर वंही विराजा करते ,वंही दिखे लक्ष्मी कि माया !
ईर्ष्या,द्वेष जंहा बसते हो ,और बैर ने पाव जमाया !
गैर सदा अपने लगते हो ,अपना लगने लगे पराया !
अहंकार में चूर रहे जो ,समझ रहे दूजे को छोटा !
एक रोज अपमानित हो वे ,लगने लगते सिक्का खोटा!!
बहुतो को हमने देखा है जो घमंठ में थे इतराए !
कट कर वे पतंग के जैसे ,धरती पर गिर कर फट जाते !!
आइना
जंहा शांति हो जंहा प्रेम ,नही कलह कि दिखती छाया !
ठाकुर वंही विराजा करते ,वंही दिखे लक्ष्मी कि माया !
ईर्ष्या,द्वेष जंहा बसते हो ,और बैर ने पाव जमाया !
गैर सदा अपने लगते हो ,अपना लगने लगे पराया !
अहंकार में चूर रहे जो ,समझ रहे दूजे को छोटा !
एक रोज अपमानित हो वे ,लगने लगते सिक्का खोटा!!
बहुतो को हमने देखा है जो घमंठ में थे इतराए !
कट कर वे पतंग के जैसे ,धरती पर गिर कर फट जाते !!

Sunday, April 11, 2010

श्री गणेश
मनुष्य अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए कोई भी कार्य आरम्भा करने के पूर्व एक अच्छे समय का चयन करता है आय सा इस लिए किया जाता है की बिना किसी परेशानी के जीवन को उन्नति के मार्ग पर आग्रसर किया जा सके, समय चयन के प्रक्रिया ही मुहुर्त कलती है मुहुर्त के चयन के लिए पंचांग,तिथि,वार ,नछत्र,कर्ण और योग को देखा जाता है मुहुर्त के स्न्दर्व में ऐसी कथा आती है की दुर्योधन की विजय और पांडव की पराजय के लिए धीरतीरासट ने मुहूर्त निकलवाया था इस बात का पता श्री कृष्ण को लगा तो उन्हों ने उस सारी समय में अर्जुन को गीता का उपदेश दे डाला/जय से ही कोरवों का सुभ समय समाप्त हुवा और पांडवों के लिए उत्तम समय आया उसी छन युद्ध का श्री गनेश कर दिया.
जो उत्तम समय धीरतीरासट ने चुना था उसे श्री कृष्ण ने व्यतीत करवा दिया और एक प्रकार से युद्ध को पांडवों के पक्छ में कर दिया वास्तव में मुहूर्त का अपनी वैज्ञानिकता,आप न महत्वा है इसका निर्धारण अगर जोतिसी सिद्धांत और ग्रहों के आधार पर किया जाय तो कार्य की सफलता कई गुना बढ़ जाती है
असुभ मुहूर्त में किये कार्य का परिणाम असुभ होता है जेसे भारत को स्वतंत्रता १५ अगस्त १९४७ की मध्य रात्रि को ब्रिष लगन में मिली थी उस समय ब्रिष लगा में रहू था और केंद्र स्थान खाली था सारे ग्रह कालसर्प योग में थे या सुभ नहीं था परिणाम स्वरुप आजादी के बाद रास्ट्रपिता की हत्या,बटवारे में लाखो की मृत्यु और विश्थापन से सभी परिचित है अगर वेदिक काल की ओर देखे तो अथर्वा वेद में सुभ मुहुर्त से सम्बंधित अनेक विवरण मिलते है इसमें दीर्घायु सुख संम्पत्ति ,सत्रु पर विजय आदि मुहूर्तो का उल्लेख मिलता है मुहूर्त में तिथि वर के बाद नछत्र का विशेष महत्वा है ये नछत्र मुख्यातह २७ है लेकिन उत्त्र्रा आसाढ़ के चतुर्थ चरण आयर स्रवन नछत्र के १५वे भाग को अभिजित नछत्र के संज्ञा दी गयी है जिससे इसकी संख्या २८ होगई है अभिजित नछत्र सभी कार्यों के लिए सुभ माना गया है प्रतेक दिन का मध्यं भाग अभिजित मुहुर्त कहलाता है जो मध्य से पहले और बाद में ४८ मिनट का होता है इस काल में लगभग सभी दोषों के निवारण की अनोखी सकती होती है इसके बाद कृतिका अन्य सभी मुहूर्तो से अधिक सुभ है मुहुर्त के संन्दर्व में चौघडियों के विषय में विचार करना आवश्यक है अतः किसी दिसा के यात्रा में चौघडियों के स्वामीका विचार भी करलेना चाहिए अति आवश्यक होने पर रविवार को पान या घी,सोमवार को दर्पण देखकर ,मंगलवार को गुड खा कर ,बुद्धवार को धनिया या तिल खा कर ,ब्रिहस्पतिवर को जीरा या दही खाकर,शुक्रवार को दही या दूध पि कर और सनी वर को अदरख या उड़द खा कर प्रस्थान किया जा सकता है
व्यक्तिगत कार्यों के अलावा राजकीय कार्यों में भी मुहूत लाभकारी सिद्ध होतें है मुहूर्त का सही विवेचना कर अनेक दुस्प्रभावों को दूर किया जा सकता है
अतः सभी तथ्यों को ध्यान में रख कर ही सुभ कार्य करना चाहिए..............................
आप लोगों का ही सरयू साव
जय माता दी

Saturday, April 3, 2010

आइना
जंहा शांति हो जंहा प्रेम ,नही कलह कि दिखती छाया !
ठाकुर वंही विराजा करते ,वंही दिखे लक्ष्मी कि माया !
ईर्ष्या,द्वेष जंहा बसते हो ,और बैर ने पाव जमाया !
गैर सदा अपने लगते हो ,अपना लगने लगे पराया !
अहंकार में चूर रहे जो ,समझ रहे दूजे को छोटा !
एक रोज अपमानित हो वे ,लगने लगते सिक्का खोटा!!
बहुतो को हमने देखा है जो घमंठ में थे इतराए !
कट कर वे पतंग के जैसे ,धरती पर गिर कर फट जाते !!
चकल्लस
चार चवन्नी देकर प्रभु ने भेजा इस संसार में ,
तिन चवन्नी खर्च हो गई केवल लोकाचार में ,
एक चवन्नी शेष बची है इसको शेष करू कैसे ,
इसे सुरक्षित रखकर सुख से अंतिम सास भरू कैसे !!
आशीषो का सम्बल देकर जैसे प्यार दिया अब तक !
वैसे ही देते रहिएगा ,शेष चवन्नी है जब तक !
वास्तु में शुभ मांगलिक चिन्हों का महत्व
वास्तु शास्त्र की महता दिन प्रतिदिन अनुभव की जा रही है /वास्तु के सुखद परिणामो से सिद्ध हो गया है कि प्राकृतिक उर्जा के समायोजन से निर्मित भवन में सकरात्मक उर्जा प्रवाहित होते रहता है ,जिसके परिणाम से स्वास्थय ,सफलताए और शांति प्राप्त होती है /वास्तु में शुख शांति स्म्रिधि के लिए वास्तु नियमो के साथ शुभ मांगलिक चिन्हों का भी प्रयोग किया जाता है
अपने भवन के मुख्य द्वार पर अपने धर्म के अनुसार मांगलिक चिन्हों का प्रयोग करना चाहिए
भारत के किसी भी राज्य ,जाती या धर्म कि संस्कृति को समझने के लिए उसके शुभ प्रतिको को समझना जरूरी है ये प्रतिक आस्था और विस्वास के आधार पर है .हिन्दू धर्म में प्रतिको को अद्भुत महिमा वाला मन जाता है
स्वास्तिक;-
हमारे भविष्य दृष्टा वैदिक काल से शुभ मांगलिक चिन्हों का प्रयोग बताया है जो चमत्कारिक है भारतीय संसकिरिति में ,मांगलिक पूजा और त्योहारों में घर के प्रवेश द्वार पर ,पूजा स्थल ,रसोई घर या अन्नागार के द्वार पर गिर्हनियो द्वारा तरह तरह के मांगलिक चित्र बनाये जाते थे
स्वास्तिक कि सीधी रेखा शिवलिंग के संकेत देती है और दूसरी रेखा सक्ति का संकेत देती है
गणित में +चिन्ह को घनात्मक माना जाता है ,विज्ञान के अनुसार पोजेटिव और निगेटिव दो अलग अलग सक्ति के मिलन को प्लस कहा गया है
स्वास्तिक को उल्टा बनाने से प्रतिकूल उर्जा बनाने लगती है और सही चिन्ह अनुकूल उर्जा बनती है जो शुभ फलदाई होता है श्रेस्ठ परिणाम के लिए ९अन्गुल अर्थात ६इन्च से कम नहीं होना चाहिए
स्वास्तिक का उपयोग मुख्य द्वार या कमरे के द्वारो पर घी और सिंदूर से अंकित करने से अधिक फलदाई होता है अत ;स्वास्तिक का उपयोग अवस्य करना चाहिए
जय श्री कृष्ण
सरयू प्रसाद साव