Friday, January 25, 2013

स्वभाव को सुधारना बड़ा मुश्किल काम है. इसीलिए कहा गया है: कस्तूरी की क्यारी करी, केशर की बनी खाद पानी दिया गुलाब का, रह गई ज्यो की त्यों सत्कर्म का पुष्प जब तक ठीक ठीक न बढ़ जाये, तब तक स्वभाव नहीं सुधर पाता. स्वभाव को बदलने के किये सत्संग से प्राप्त सूत्रों को आत्मसात करना जरुरी है.हम सत्संग में अच्छी अच्छी बातें सुनते हैं. जिनमे से ज्यादातर हम सभी जानते भी हैं. मगर क्या हम उनपर अमल भी करते हैं? अगर नहीं करते तो सत्संग का जितना लाभ हमें मिलना चाहिए था, वो नहीं मिलता. बाज़ार में हम जब कुछ खरीदते हैं तो अपने रुपयों को खर्च करते समय यह देखना नहीं भूलते की हम जो खरीद रहें हैं वो वास्तु उतने रुपयों की ही है. मगर जिंदगी का बहुमूल्य समय अति दुर्लभ सत्संग में जाकर भी कुछ सीखे बिना अपने जीवन को पूर्ववत ही रखते हैं तो इसे सिर्फ श्रम ही कहा जा सकता है. अपना जीवन, स्वभाव बदलना अपने ऊपर है. जय गुरु

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